पाचन तंत्र






   -: पाचन तंत्र ( Digestive system ) :-


संजीवो में ऊर्जा का स्रोत भोजन है, अतः जटिल भोज्य पदार्थों  का जटिल अपघटन द्वारा सरल पदार्थो में रूपांतरित होना ही पाचन कहलाता है तथा शरीर का वह भाग जिसके द्वारा भोजन का अंतग्रहन (Ingestion),पाचन (Digestion),अवशोषण व मल त्याग होता है,वह आहार नाल कहलाता है।

आहार नाल में प्रमुखतया मुख,मुखगुहा,ग्रसनी,ग्रासनल, अग्नाशय,छोटीआन्त,बडीआन्त व सहायक पाचन ग्रन्थियां (लार ग्रन्थि,यकृत,अग्नाशय) को सम्मिलित किया जाता है।
 मुख – होठों पर लेबियल ग्रन्थि (सिबेसीयल या मोम ग्रन्थि का     रूपांतरण) पायी  जाती है जो होंठो को नम बनाये रखती है तथा मिसनर्स कणिका के कारण होठ अत्यंत संवेदी होते है।
मुखगुहा – यह दांतो एवं जबड़ो से घिरी होती है। मनुष्य में दो जबड़े पाए जाते है,ऊपरी जबड़ा स्थिर जबकी निचला जबड़ा गतिमान होता है। निचला जबड़ा डेन्टरी नामक अस्थि से निर्मित होता है। होंठ, मसूड़े तथा गालों के बीच का घिरा हुआ संकरा क्षेत्र प्रघान कहलाता है।

मुख गुहा में स्थित नरम तालु, ग्रसनी में लटका रहता है, जो वेलम पेलेटाई (तालु विच्छन्द) कहलाता है। यह विच्छेद भोजन के निगलने के समय अंतः नासाछिद्र को बंद कर देता है। जीभ (Tonque) का अग्र भाग स्वतन्त्र तथा पश्च भाग मुख गुहा को फर्श से जुड़ा रखता है।

ध्यातव्य रहे – कुते की जिह्वा द्वारा गर्मियों में ऊष्मा की हानि करके कुत्ते में तापमान का नियंत्रण किया जाता है।
दाँत – स्तनधारी के दांत गर्तदन्ति (दाँत ग्रत्तिकाग्र में धँसे हुए) या थिडोकोन्ट, द्वि बार दन्ती (स्थाई दाँत व अस्थाई दाँत) व विषम दन्ती (अलग-अलग प्रकार के दाँत) होते है।
मनुष्य में पाया जाने वाला दन्त सूत्र – (उपरी जबड़ा  2 1 2 3 )/(निचला जबड़ा  2 1 2 3  )×2 =32
जहाँ कृतनक (Incisor) दाँत-2,रदनक (Canine) -1, अग्र चवर्णक (Pre-Molar)-2, चवर्णक (Molar)-3




ध्यातव्य रहे- हाथी के दाँत ऊपरी कृतनक (Incisor) दाँत होता है। ख़रगोश के कृतनक दाँत निरंतर व्रद्धि करते है अतः चूहा इनकी व्रद्धि को नियंत्रित करने के लिए वस्तुओं को काटते है जिससे कि दोनों ओर के दाँत आपस मे घिसते रहे। यदि एक जबड़े के कृतनक दाँत तोड़ दे तो दूसरे जबड़े का कृतनक दांत निरन्तर व्रद्धि करेगा जिससे चूहे की मृत्यू हो जावेगी।
शरीर का सबसे कठोरतम भाग इनेमल होता है, जो कैल्सियम कार्बोनेट व कैल्सियम सल्फेट से मिलकर बना होता है। मनुष्य के 32 दांतों में 20 अस्थाई तथा 12 स्थायी होते है।
मनुष्य के तीसरे मोलर दांत को अक्ल दाढ़ (Wisdom teeth) कहते है। लार ग्रन्थियों के स्रावण को लार कहते है। लार में टायलिन व लाइसोजाइम एंजाइम पाया जाता है। लाइसोजाइम मुख गुहा में पाए जाने वाले जीवाणु को नष्ट करती है।

ध्यातव्य रहे – आँसुओ में भी लाइसोजाइम एंजाइम पाया जाता है, जो जीवाणु से सुरक्षा करता है।

एपिगलोटिस (घाटी दक्कन) भोजन को निगलते समय घाटी द्वार को बंद कर देता है, जिससे भोजन श्वासनली में नही जाता , अतः घाटी दक्कन को ट्रैफिक पुलिस भी कहते है।

3.ग्रासनाल – यह सीधा, नालिकाकार जो ग्रसनी को आमाशय से जोड़ता है। ग्रासनाल में पाचक ग्रन्थि नही पायी जाती है। अतः ग्रासनाल / ग्रसिका (इसोफेगस) में पाचन क्रिया नही होती

4. आमाशय (Stomach) – यह आहारनाल का सबसे चौड़ा थैलीनुमा भाग है। यह ‘J’ आकार है जो कि डायफ्राम के अधर भाग में बायीं ओर स्थित होता है। आमाशय तीन भागों में मिलकर बना होता है।
अ. कार्डियम आमाशय
ब. फंडिक आमाशय
स. पायलोरिक आमाशय
ग्रासनाल व आमाशय के बीच कार्डियक कपाट पाया जाता है,जबकि आमाशय व ग्रहणी के बीच पायलोरिक कपाट पाया जाता है।
भोजन के मंथन के समय आमाशय के ये दोनों कपाट बंद रहते है।
ध्यातव्य रहे – जुगाली करने वाले जानवर के आमाशय में चार कक्षक पाए जाते है।
आमाशय के फंडिक भाग में निम्न कोशिका पायी जाती है –
श्लेष्मा कोशिका – यह श्लेष्मा का स्रावण करती है।
जाइमोजन/पेप्टिक/चीफ कोशिका – यह पेप्सीनोजन व प्रोनिन नामक निष्क्रिय एंजाइम का स्राव करती है।
ऑक्सीनटिक कोशिका – यह HCl का स्राव करती है।
आमाशय में भोजन 4 से 5 घण्टे तक रहता है।

जठर रस ( Gastric Juice ) – आमाश्य में स्थित पायलोरिक ग्रन्थि द्वारा गैस्टिन हार्मोन का स्रावण किया जाता है, जो जठर ग्रन्थियों को जठर रस स्रावित करने हेतु उत्तेजित करता है। जठर रस रंगहीन, चिपचिपा होता है, जिसका pH 1-1.5 तक होता है। जठर रस में पेप्सिनोजन , रेनिन, लाइपेज एंजाइम पाए जाते है। रेनिन एंजाइम दुध में उपस्थित केसीन प्रोटीन को कैल्सियम तत्व की उपस्थिति में कैल्शियम पेरकेसिनेट नामक यौगिक में परिवर्तित कर देता है, इस क्रिया को दूध का जमना कहते है।


HCl के कार्य – मुख गुहा में आये क्षारीय भोजन का माध्यम अम्लीय करना तथा जीवाणुओ को नष्ट करना, निष्क्रिय पेप्सिनोजन एंजाइम , HCl की उपस्थिति में संक्रिय पेप्सिन में बदलता है तथा प्रोरेनिन HCl की उपस्थिति में रेनिन में बदल जाता है।

ध्यातव्य रहे – आमाशय के भीतरी दीवार का अस्तर श्लेषमा झिल्ली का बना होता है, जो HCl के अम्लीय प्रभाव से आमाशय के दीवारों की सुरक्षा करता है।
5. छोटी आंत्र ( Small Intestine) : मनुष्य में आंत्र 7 मी. लंबी होती है, इसका व्यास कम लेकिन लंबाई ज्यादा होती है।
छोटी आंत्र के तीन भाग होता है –
गृहणी
मध्यान्त्र
शेषानंत्र



गृहणी (ड्यूडेनम) – यह U आकार की 15 सेमी. लंबी होती है । इसकी दोनो भुजाओं (आरोही व अवरोही) के बीच अग्नाशय पाया जाता है। ग्रहणी में पित्त वाहिनि के बीच अग्नाशय पाया जाता है। सर्वाधिक पाचन की क्रिया ग्रहणी में होती है। ग्रहणी में पाचन पित्त तथा अग्नाशय रस के कारण होता है।
पित्त (Bile) – यह यकृत कोशिका में निर्मित तथा पित्ताशय (Gall Bladder) में एकत्रित होता है। पित्त में बिलीरुबिन व बिलिवर्डिन नामक पित्त वर्णक पाए जाते है। पीलिया (Jaundice) रोग होने पर बिलीरुबिन पित्त के कारण त्वचा का रंग पीला पड़ जाता है। पित्त में एंजाइम नही पाए जाते है। बिलिवर्डिन पित्त के विखण्डन होने से यूरोक्रोम (इसके कारण मूत्र का रंग पीला होता है) व स्टरकोबिलिन वर्णक (मल का पीला रंग) बनते है।

पित्त के कार्य – यह माध्यम को क्षारीय बनाता है तथा प्रति जीवाणु द्रव है। यह वसा का पाससिकरण कर देता है, जिससे वसा का सतह क्षेत्रफल बढ़ जाता है व पाचन में सुविधा होती है। पित्त के द्वारा वसा में घुलनशील विटामिन A,D,E,K का अवशोषण होता है।
B. मध्यान्त्र (जेजुनम) – यह ग्रहणी व शेषांत्र के मध्य पायी जाती है।
C. शेषांत्र (इलियम) – यह 3 मी. लंबी व कुंडलित होती है। पचित भोजन का सर्वाधिक अवशोषण इसी में होता है।
6. बड़ी आंत्र – यह तीन भागों से मिलकर बनी होती है।
सीकम (Caccum) – यह छोटी आंत्र व बड़ी आंत्र के मिलने के स्थान पर पाया जाता है।
कोलन (Colon) –
मलाशय ( रेक्टम) – यह आहारनाल का अंतिम भाग (80cm) जो जल व लवण अवशोषी कोशिका युक्त होता है। बड़ी आंत्र में भोजन के पाचन नही होता बल्कि जल का अवशोषण होता है।

पाचन की क्रियाविधि
भोजन का अंतर्ग्रहण करने के पश्चात मुखगुहा में उपस्थिति लार ग्रन्थि द्वारा लार का स्रावण किया जाता है। मनुष्य में  प्रतिदिन 1-1.5 लीटर लार का स्रावण होता है तथा लार में 99% जल व टायलिन, लाइसोजाइम एंजाइम होते है। लार का pH 6.8 -7.5 तक होता है, अतः मुख में चबाने के परिणाम स्वरूप तथा लार के मिलने से प्राप्त भोजन की लुगदी को बोलस (Bolus) कहते है। भोजन को निगलना शुरू में एक एच्छिक क्रिया है तथा उसके बाद कि क्रिया अनैच्छिक क्रिया होती है।
आमाशय में पाचन – आमाशय में जठर रस का pH 1.5 होता है,जो प्रतिदिन 1-3 लीटर तक स्रावित होता है, इसमे पेप्सिनोजन व प्रोटेनिन, जठर रस लाइपेज एंजाइम पाए जाते है।
निष्क्रिय पेप्सीनोजन hcl कारण पेप्सिन में बदलता है
निष्क्रिय प्रोरेनिन hcl कारण रेनिन  में बदलता है


अब प्राप्त संक्रिय पेप्सिन प्रोटीन को पेप्टोन व पॉलीपेप्टाइड में विखण्डित कर देता है। रेनिन दूध में उपस्थित केसीन प्रोटीन को कैल्सियम पेराकेसिनेट (दही) में बदलता है, यह क्रिया दूध का जमना कहलाती है। रेनिन मनुष्य में नही पाया जाता,पशुओं के पछड़ो में पाया जाता है।
छोटी आंत्र में पाचन  - ग्रहणी में पित्त रस व अग्नाशयी रस द्वारा पाचन होता है। प्रतिदिन पित्त का 700 – 1000 मिली. तक का स्रावण होता है, पित्त का pH 7.7 होता है। अग्नाशयी रस में 98% जल, pH 7.5- 8.3 ॥
बड़ी आंत्र में पाचन – इसमे कोई पाचन नही होता , केवल जल का अवशोषण होता है। मल में दुर्गन्ध आने का कारण इल्दोल व स्केटोल का पाया जाना है।
आमाशय में प्रोटीन का सबसे पहले
पाचन होता है।

मनुष्य में 3 प्रकार की लार ग्रन्थियां होती है –
सबलिंग्वल (जीभ के नीचे)
सब मेंडी बुलर (जबड़े के नीचे)
पेरोटिड (कान के नीचे)
अग्नाशयी रस पूर्ण पाचक रस होता है। भूखे व्यक्ति में सबसे पहले ग्लाइकोजन का उपयोग होता है। लंबे समय तक भूखे रहने पर शरीर यकृत व वसा(प्रोटीन)  से ऊर्जा निर्माण होता है।

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